वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में मान्यता प्राप्त एक परंपरागत व्रत है जो सावित्री नामक एक स्त्री द्वारा किया जाता है। यह व्रत स्त्रियों के पति की दीर्घायु, सुख, और समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है। वट सावित्री व्रत महीने की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है जो हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अमावस्या होती है।
वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) हिंदी में
एक समय की बात है, एक नगर में सत्यवान नामक एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम सावित्री था, जो अत्यंत सुंदर, धर्मनिष्ठा और पतिव्रता थी। सावित्री राजा सत्यवान की बहुत प्रेमी थी और पतिव्रता धर्म की पालना करती थी।
एक बार, सावित्री ने देखा कि उनके पति की आयु कम हो गई है और वह विपत्ति का सामना कर रहे हैं। उन्हें पता चला कि उनके पति की मृत्यु की आयुष्य तिथि आ गई है। सावित्री अपने पति के लिए बहुत चिंतित हुई और उन्हें बचाने के लिए प्रार्थना की।
सावित्री ने वट वृक्ष की छाया में तपस्या करने का निर्णय लिया और वह तीन दिन तक भोजन की अन्न छोड़कर व्रत रखने लगी। तीसरे दिन, जब सावित्री वट वृक्ष की छाया में बैठी थी, यमराज वहां पहुंचे और सत्यवान की आत्मा को लेने आए। सावित्री यमराज के पास चली गई और उनसे व्रत की ताकत का वरदान मांगा।
यमराज ने सावित्री की प्रार्थना को स्वीकार किया और उन्हें अपने पति की आत्मा को वापस देने की अनुमति दी, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि सावित्री को इस उपवास को सम्पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा के साथ पालन करना होगा। सावित्री ने शर्त स्वीकार की और यमराज ने उनके पति की आत्मा को उनके पास वापस भेज दिया।
सावित्री और सत्यवान की आत्मा वापस आई और सावित्री ने उन्हें जीवित कर दिया। इस प्रकार, सावित्री ने अपने पति की आत्मा को यमराज के हाथ से छीनकर उन्हें जीवित किया और एक बड़ा चमत्कार किया।
श्री सत्यनारायण भागवान व्रत कथा।
वट सावित्री व्रत पूजन विधि (Vat Savitri pujan vidhi)
वट सावित्री की कथा इस तरह समाप्त हुई। यह कथा महिलाओं के लिए सात फेरों के समान महत्वपूर्ण है और इसे व्रत के रूप में मनाया जाता है। महिलाएं वट सावित्री के व्रत में विधिवत पाठ, पूजा और दान आदि करती हैं और अपने पति की लंबी आयु और सुख-शांति की कामना करती हैं। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है।
कृपया ध्यान दें कि यह कथा पौराणिक विश्वासों पर आधारित है ।
वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) - दूसरा कथा
एक बार वट सावित्री के दिन, रानी सावित्री अपने पति के साथ वन में घूमने गईं। उन्होंने वृक्ष के पास बैठकर व्रत करने का निर्णय लिया। तभी वहां एक वृद्ध ब्राह्मण आया और बताया कि राजा की मृत्यु का समय संध्या के समय निकट है। वह ब्राह्मण रानी को बताता है कि उसके पति की उम्र पूरी नहीं होगी।
रानी सावित्री बहुत चिंतित हो जाती हैं और वह व्रत करते समय ब्राह्मण से पूछती हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए। ब्राह्मण उसे बताता है कि वह सती सती की तरह ईश्वर की पूजा करे और व्रत से भी विशेष आदर्शता रखे। ब्राह्मण ने उसे व्रत विधि और दुर्गा देवी की आराधना के बारे में बताया। उसने यह भी बताया कि सावित्री की पत्नी ने इसी व्रत को करके अपने पति की जीवन रक्षा की थी।
रानी सावित्री ने ब्राह्मण के उपदेश को मानते हुए व्रत करने का निर्णय लिया। उन्होंने सभी विधियों के साथ व्रत आरंभ किया और त्रिदिवसीय व्रत के दिन भगवान विष्णु, शिव, ब्रह्मा, इंद्र, यमराज, सूर्य देव, अग्नि और कुबेर जी की पूजा की।
इसके बाद सावित्री रानी ने भगवती दुर्गा का व्रत किया और विशेष भक्ति और आदर्शता के साथ उनकी पूजा की। धनुर्धरी देवी की आराधना के दौरान वह ईश्वर से अपने पति की लंबी उम्र की मांग करती हैं।
ईश्वर ने रानी सावित्री की आराधना और उनकी निष्ठा को देखकर प्रसन्न होकर उन्हें अवधि में अब से दोगुनी उम्र देने का वचन दिया। इसके बाद से राजा की उम्र बढ़ गई और वह दीर्घायु हो गए।
इस प्रकार, सावित्री ने अपने पति की जीवन रक्षा की और वट सावित्री व्रत को पूरी ईमानदारी और विधिवत निभाकर अपने पति की उम्र को बढ़ाया। यही कथा आज भी भारतीय महिलाओं द्वारा वट सावित्री व्रत का प्रमुख अंग है।
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